आनंद कुमार.
समाज जागरण.
दुद्धी/ सोनभद्र। इस्लाम धर्म में रमजान व ईद त्योहार की त्योहार में जकात और सदका-ए -फितर का विशेष महत्व है. यह दोनों दान न केवल जरूरतमंदों की सहायता के लिए होते हैं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और समाज में भाईचारे को बढ़ाने का भी एक महत्वपूर्ण साधन है. यह इंसानियत को बढ़ावा देने और गरीबों की मदद करने का जरिया भी है, जिससे हर व्यक्ति ईद की खुशियों में शामिल हो सकता है. इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक जकात इस्लाम की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है और हर सक्षम मुसलमान पर अनिवार्य होती है. जकात देने से धन शुद्ध होता है और उसमें बरकत आती है. इससे समाज में आर्थिक असमानता कम होती है और सामूहिक समृद्धि को बढ़ावा मिलता है. ईद-उल-फितर से जुड़ा है यह अनिवार्य दान हर मुस्लिम पुरुष, महिला और बच्चे के लिए आवश्यक होता है, जो रमजान के दौरान रोजे रखने वालों को शुद्ध करने और ईद के दौरान सभी के पास पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जरूरतमंद लोग भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें. इसे ईद की नमाज से पहले देना बेहतर माना जाता है, ताकि गरीबों को समय पर सहायता मिल सके. दान केवल धन का लेन-देन नहीं है, बल्कि यह समाज और आत्मा की शुद्धि का भी माध्यम है. इससे समाज में प्रेम, करुणा और एकता बढ़ती है. दान करने वाला व्यक्ति अल्लाह के प्रति अपना कृतज्ञता व्यक्त करता है और समाज में समानता को बढ़ावा देता है।