समाज जागरण
विश्व नाथ त्रिपाठी
अनुसूचित जाति / अनु ,जन जाति की सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून अन्य लोगों के लिए सिर दर्द बनता जा रहा है ।वैसे तो संविधान सबको बराबर हक देने की बात कहता है लेकिन विशेष जाति और धर्म के लिए बनाए गए कानून अन्य जातियों को कानून अलग नहीं करते ऐसा लोग कहते हैं लेकिन जमीनी हकीकत में अब अन्य लोगों को इज्जत बचाना भी मुश्किल होने लगा ,यह बातें सवर्णों और पिछड़ों के बीच चर्चा में आने लगी।बताता चलूं कि अनुसूचित जाति के नेताओं की अमर्यादित भाषा और भड़काऊ भाषणों से सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने लगा है।लोक तंत्र में जनसंख्या शासन व सत्ता का केंद्र विंदु हुआ करता है विशेषकर भारत में जहां मूर्ख भी मंत्री और प्रधानमंत्री बन सकता है ,चोर डकैत माफिया और हत्यारे भी चुनाव की वैतरणी पार करके माननीय बन जाते हैं ।जिसे समाज बहिष्कृत करना चाहती है उसे मतदान एक छद्म सम्मानित व्यक्ति बना देता है।कानून को बौना करदेना ,अपराधी को सम्मान के साथ रखना, माफियाओं के आगे घुटने टेक कर भाषा को मृदुल रखना आदि जनता को सिखाने लगता है ,आज समाज में लोकतंत्र का यह घिनौना रूप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगा है ।
गैर अनुसूचित जाति को अब शुकून से रहने का अधिकार नहीं रह गया है ।नेताओं के संरक्षण में पलने वाले लोग अन्य जातियों के साथ आए दिन दुर्व्यवहार करने लगे है।झूठा मुकदमा भी संगीन धाराओं में दर्ज हो रहे हैं इतना ही नहीं बेइज्जती करके मुकदमा लिखवाना व्यवसाय के रूप में प्रचलित होने लगा है।
मैं प्रतापगढ़ की कुंडा तहसील के दो उदाहरण पेश करता हूं जिसमें एक ब्रह्मण व एक यादव के उत्पीड़न का मामला अरसे से चल रहा है जिसका निस्तारण प्रशासन नहीं करता उल्टे भुक्तभोगी को ही पुलिस भी परेशान करती है ।
एक तो सिया गांव सभा के चंदई के पूरा का मामला है जिसमें राम शिरोमणि पांडे की चक का कुछ भाग एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने जोत रखा है सरकारी नाप के बाद भी मामले का निस्तारण इसलिए नहीं हो सका क्यों कि सभी क्षेत्रीय नेता वोट की लालच में उसी अनु सूचित के साथ खड़े हैं ।
दूसरा फूल पुर मौरी में यादव कोटेदार के साथ भी अभद्रता की जा रही है । वह सरकारी सस्ते गल्ले का कोटेदार है कई बार उसकी कोटे की दूकान हरिजन के लोगों ने लूट लिया।बेचारा कोटेदार क्या करें।किसके पास जाय।हरिजन उत्पीड़न का भय उसी का उत्पीडन कर रहा है ।यदि समय रहते सरकार नियंत्रण नहीं कर सकी तो वर्ग संघर्ष खड़ा हो सकता है ।