मेरी जान तिरंगा है मेरी आन तिरंगा
अंग्रेजोंमेरी जान तिरंगा मेरी शान तिरंगा है

मेरी जान तिरंगा मेरी शान तिरंगा है

मेरी जान तिरंगा है मेरी आन तिरंगा
अंग्रेजोंमेरी जान तिरंगा मेरी शान तिरंगा है

मौलाना रिफाकत हुसैन का विशेष लेख

मेरी जान तिरंगा है मेरी आन तिरंगा

अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद हुए तो हमें 70 सालों से ज़्यादा हो चुके हैं और साइंस से लेकर तकनीक आदि के क्षेत्र में हमने अपने आपको विकसित भी किया है लेकिन यह कुछ सवाल हर सच्चे हिन्दुस्तानी को अपने आपसे पूछना चाहिए जो इस बार अपने घर पर तिरंगा लगाने जा रहे हैं l मंगल और चांद तक पहुंच चुके एक गौरवशाली देश में अभी भी धर्म के नाम पर दंगे होते हैं और उसी देश की 24 प्रतिशत आबादी अभी भी शिक्षा से दूर है l भ्रष्टाचार इंडेक्स में हम 180 देशों में 85वें स्थान पर हैं यानि यह समझिए हम अभी 50 फीसदी भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं l सरकार की तरफ से समानता, शिक्षा और सामाजिक कुरीतियों जैसे मुद्दों पर अक्सर जागरुकता अभियान चलाए जाते रहे हैं जिनसे काफी हद तक सुधार भी हुआ है लेकिन अभी बहुत काम करना बाकी है l ऑलंपिक से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स जैसे दुनियाबी प्लेटफार्म पे भारत की मीराबाई चानू, पीवी सिंधु, साईना नेहवाल, सानिया मिर्जा, साक्षी मालिक, गीता-बबिता, मनु भाकर, निकहत ज़रीन भारतीय महिला हॉकी टीम से लेकर बर्मिंघम में बिना कोच और स्पॉन्सर के गोल्ड मेडल जीतने वाली हमारी लॉन बॉल्स टीम हम भारतीयों को शुरू से लेकर आखिर तक गौरव करने के मौके प्रदान करती रहती हैं तो वहीं इसी देश में 1990 से लेकर अब तक 500000 कन्या भ्रूण हत्याएं हमें शर्म से डूब जाने को कहती हैं l यह स्थिति अभी भी उस देश में है जहां की कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स और खुशबू मिर्जा नासा से लेकर सर्न प्रयोगशाला में भारत की ल़डकियों की प्रतिभा के झंडे गाड़ चुकी हैं l जहां की अरुणिमा सिन्हा दोनों पैर कट जाने के बावजूद माउंट एवरेस्ट फतह कर देती हैं l ऐसी बहुत सी उपलब्धियों के बावजूद देश के कई समाजों और इलाकों में बालिका शिक्षा को लेकर निराशाजनक स्थिति है l ल़डकियां लड़कों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं यह समझाने के लिए आमिर खान को फिल्म बनानी पड़ती है और दहेज के लालच को लेकर एक सीरियल l यह हालात हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम वाकई पूरी तरह आज़ाद हैं यह समाज की बनाई रूढ़िवादी बेड़ियों में जकड़े मानसिक गुलाम ? अभी तक जाति के आधार पर बंटा देश पूरी तरह से इससे मुक्त नहीं हो पाया था कि धर्म की राजनीति में बंधकर लगभग एक बंधुआ मजदूर बन गया है l सब अपने झंडे ऊँचे करने में लगे हुए हैं, होड़ है कि किसका लाउडस्पीकर तेज़ आवाज़ में नारे लगाएगा l बीते कुछ सालों में एक दूसरे के धर्म को नीचा या अपने आपको ऊँचा दिखाने के चक्कर में हुई हिंसा में किसी धर्म विशेष का झंडा ऊंचा किया हो या न किया हो लेकिन एक दिन ऐसे शर्मनाक कृत्य भगवान राम, बुद्ध और ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की धरती का मस्तक ज़रूर कुछ नीचा कर देंगे l हमारे देश ने हमेशा से पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और शांति का संदेश दिया है l हमारी सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतें एक दूसरे से जुड़ी होती हैं l सोचिए अगर दुनिया का सुपरपॉवर देश अमेरिका धर्म के नाम पर भेदभाव करता तो क्या आज वह सुपरपॉवर होता l दरअसल विचारों की स्वतंत्रता ही असली आजादी है l हम आज 21वीं सदी में एक दूसरे के धर्म या जाति का बायकाट करके अपने ही देश की तरक्की पे कुल्हाड़ी मार रहे हैं l कभी धार्मिक और जातीय घृणा में बर्बाद हुए अफगानिस्तान, सीरिया, बर्मा और श्रीलंका को देखिए l इन सब देशों में भी ‘मेरा झंडा ऊँचा’ करने की होड़ लगी हुई थी l कभी आपने जंगल में रहने वाले जानवरों को आपस में धर्म और जाति के नाम पर लड़ते देखा ? जबकि हम ऐसा करके अपने आपको जानवरों की सूची में शामिल करने पे तुले हैं जबकि हमें लड़ना चाहिए, अशिक्षा से, कन्या भ्रूण हत्या से, आपसी घृणा से, प्रदूषण, भ्रष्टाचार और ग्लोबल वार्मिंग से l असल में धर्म इंसान को पशुओं से अलग करने के लिए ही आया था लेकिन इंसान धर्मांध होकर पशुओं की तरह हिंसक हो गया l बचपन में मैंने एक मिशनरीज की किसी किताब में एक पादरी का बयान पढ़ा था जिसमें वह ईसाई पादरी कह रहा था कि दूसरे देशों की प्रतिभाओं को अपने देशों में आने के लिए दो वजहों से मौका देते हैं, एक तो हम उसकी काबिलियत का इस्तेमाल अपने देश की तरक्की के लिए करते हैं तो दूसरे हम इस तरह दूसरे देशों को उनकी प्रतिभा का लाभ उठाने से वंचित कर देते हैं l एक शिक्षक के तौर पे मैं हर भारतीय से धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर उठकर देश के लिए एक भारतीय बनकर सोचने की अपील करता हूँ क्यूँकि देश को जाति और धर्म आधारित सोच नहीं बल्कि इन्हीं धर्म और जातियों के निरपेक्ष विचारों वाले विवेकानन्द, अब्दुल कलाम और अम्बेडकर जैसे लोग आगे बढ़ाते हैं धर्म और जाति के नाम पर लड़ने वाले नहीं l तो इन सारी मानसिक बेड़ियों से ऊपर उठकर इस स्वतन्त्रता दिवस पर अपना झण्डा खूब ऊँचा करके लगाइए l की ग़ुलामी से आज़ाद हुए तो हमें 70 सालों से ज़्यादा हो चुके हैं और साइंस से लेकर तकनीक आदि के क्षेत्र में हमने अपने आपको विकसित भी किया है लेकिन यह कुछ सवाल हर सच्चे हिन्दुस्तानी को अपने आपसे पूछना चाहिए जो इस बार अपने घर पर तिरंगा लगाने जा रहे हैं l मंगल और चांद तक पहुंच चुके एक गौरवशाली देश में अभी भी धर्म के नाम पर दंगे होते हैं और उसी देश की 24 प्रतिशत आबादी अभी भी शिक्षा से दूर है l भ्रष्टाचार इंडेक्स में हम 180 देशों में 85वें स्थान पर हैं यानि यह समझिए हम अभी 50 फीसदी भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं l सरकार की तरफ से समानता, शिक्षा और सामाजिक कुरीतियों जैसे मुद्दों पर अक्सर जागरुकता अभियान चलाए जाते रहे हैं जिनसे काफी हद तक सुधार भी हुआ है लेकिन अभी बहुत काम करना बाकी है l ऑलंपिक से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स जैसे दुनियाबी प्लेटफार्म पे भारत की मीराबाई चानू, पीवी सिंधु, साईना नेहवाल, सानिया मिर्जा, साक्षी मालिक, गीता-बबिता, मनु भाकर, निकहत ज़रीन भारतीय महिला हॉकी टीम से लेकर बर्मिंघम में बिना कोच और स्पॉन्सर के गोल्ड मेडल जीतने वाली हमारी लॉन बॉल्स टीम हम भारतीयों को शुरू से लेकर आखिर तक गौरव करने के मौके प्रदान करती रहती हैं तो वहीं इसी देश में 1990 से लेकर अब तक 500000 कन्या भ्रूण हत्याएं हमें शर्म से डूब जाने को कहती हैं l यह स्थिति अभी भी उस देश में है जहां की कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स और खुशबू मिर्जा नासा से लेकर सर्न प्रयोगशाला में भारत की ल़डकियों की प्रतिभा के झंडे गाड़ चुकी हैं l जहां की अरुणिमा सिन्हा दोनों पैर कट जाने के बावजूद माउंट एवरेस्ट फतह कर देती हैं l ऐसी बहुत सी उपलब्धियों के बावजूद देश के कई समाजों और इलाकों में बालिका शिक्षा को लेकर निराशाजनक स्थिति है l ल़डकियां लड़कों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं यह समझाने के लिए आमिर खान को फिल्म बनानी पड़ती है और दहेज के लालच को लेकर एक सीरियल l यह हालात हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम वाकई पूरी तरह आज़ाद हैं यह समाज की बनाई रूढ़िवादी बेड़ियों में जकड़े मानसिक गुलाम ? अभी तक जाति के आधार पर बंटा देश पूरी तरह से इससे मुक्त नहीं हो पाया था कि धर्म की राजनीति में बंधकर लगभग एक बंधुआ मजदूर बन गया है l सब अपने झंडे ऊँचे करने में लगे हुए हैं, होड़ है कि किसका लाउडस्पीकर तेज़ आवाज़ में नारे लगाएगा l बीते कुछ सालों में एक दूसरे के धर्म को नीचा या अपने आपको ऊँचा दिखाने के चक्कर में हुई हिंसा में किसी धर्म विशेष का झंडा ऊंचा किया हो या न किया हो लेकिन एक दिन ऐसे शर्मनाक कृत्य भगवान राम, बुद्ध और ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की धरती का मस्तक ज़रूर कुछ नीचा कर देंगे l हमारे देश ने हमेशा से पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और शांति का संदेश दिया है l हमारी सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतें एक दूसरे से जुड़ी होती हैं l सोचिए अगर दुनिया का सुपरपॉवर देश अमेरिका धर्म के नाम पर भेदभाव करता तो क्या आज वह सुपरपॉवर होता l दरअसल विचारों की स्वतंत्रता ही असली आजादी है l हम आज 21वीं सदी में एक दूसरे के धर्म या जाति का बायकाट करके अपने ही देश की तरक्की पे कुल्हाड़ी मार रहे हैं l कभी धार्मिक और जातीय घृणा में बर्बाद हुए अफगानिस्तान, सीरिया, बर्मा और श्रीलंका को देखिए l इन सब देशों में भी ‘मेरा झंडा ऊँचा’ करने की होड़ लगी हुई थी l कभी आपने जंगल में रहने वाले जानवरों को आपस में धर्म और जाति के नाम पर लड़ते देखा ? जबकि हम ऐसा करके अपने आपको जानवरों की सूची में शामिल करने पे तुले हैं जबकि हमें लड़ना चाहिए, अशिक्षा से, कन्या भ्रूण हत्या से, आपसी घृणा से, प्रदूषण, भ्रष्टाचार और ग्लोबल वार्मिंग से l असल में धर्म इंसान को पशुओं से अलग करने के लिए ही आया था लेकिन इंसान धर्मांध होकर पशुओं की तरह हिंसक हो गया l बचपन में मैंने एक मिशनरीज की किसी किताब में एक पादरी का बयान पढ़ा था जिसमें वह ईसाई पादरी कह रहा था कि दूसरे देशों की प्रतिभाओं को अपने देशों में आने के लिए दो वजहों से मौका देते हैं, एक तो हम उसकी काबिलियत का इस्तेमाल अपने देश की तरक्की के लिए करते हैं तो दूसरे हम इस तरह दूसरे देशों को उनकी प्रतिभा का लाभ उठाने से वंचित कर देते हैं l एक शिक्षक के तौर पे मैं हर भारतीय से धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर उठकर देश के लिए एक भारतीय बनकर सोचने की अपील करता हूँ क्यूँकि देश को जाति और धर्म आधारित सोच नहीं बल्कि इन्हीं धर्म और जातियों के निरपेक्ष विचारों वाले विवेकानन्द, अब्दुल कलाम और अम्बेडकर जैसे लोग आगे बढ़ाते हैं धर्म और जाति के नाम पर लड़ने वाले नहीं l तो इन सारी मानसिक बेड़ियों से ऊपर उठकर इस स्वतन्त्रता दिवस पर अपना झण्डा खूब ऊँचा करके लगाइए l