समाज जागरण
सरकार के द्वारा सुरक्षा सप्ताह, सुरक्षा माह चलाये जाने तथा निर्माण मजदूरों के सुरक्षा के लिए जरूरी नियम बनाए जाने के बावजूद निर्माण मजदूर इसके आस-पास कही नही भटकते। आज भी भवन निर्माण मजदूर सिर पर हैलमेट नही बल्कि गमछा लपेट कर करते है काम। बहुमंजिला सोसायटी निर्माण मे भले ही थोड़े बहुत सुरक्षा नियमों का पालन होता हुआ आपको दिख जायेगा लेकिन ग्रामीण क्षेत्र मे हो रहे बेतहाशा 6 मंजिला भवन निर्माण मे न तो किसी प्रकार के मानक का पालन होता है नही तो किसी प्रकार से सुरक्षा पर ध्यान दिए जाते है। गलियों मे लटके तारों के बावजूद ढलाई करने वाले मजदूर बिना किसी सेफ्टी के काम करते है। न तो उनके पास मे कोई सेफ्टी जुते होते है नही तो कोई हेलमेट। बैल्ट की बात तो छोड़ ही दीजिए। इन्श्योरेंस की बात तो छोड़ ही दीजिए।
शहरों मे सैकड़ों के संख्या मे एनजीओ है जो इनके लिए काम करने का दम भरते है, दरअसल बात तो यह है कि मजदूर लोग इनके बारे मे जानते तक नही है। एनजीओं वालों की पहुँच सिर्फ इनके कुछ नेताओं तक होता है जिनका इन मजदूरों के हालात से कुछ लेना देना नही होता है बल्कि सिर्फ इनको साधना होता है। चुनावी मौसम मे रंग बिरंगे झंडा लिए नेता जी दलित, मजदूर, की बात करने वाली राजनीतिक पार्टी इस मामले मे बिल्कुल नदारद दिखता है। यह भी कह सकते है कि उनका दावा और वादा दोनों ही सिर्फ चुनाव जितने के लिए होते है चाहे वह पक्ष की हो या विपक्ष की।
कुछ जानकारों का मानना है कि निर्माण मे कार्य करने वाले मजदूर ठेकेदारों के अधीन होते है। इन तक नही तो किसी जागरुकता अभियान चलाने वाले एजेंसीज या फिर एनजीओं की पहुँच होता है ना ही तो यह लोग स्वयं के सुरक्षा को लेकर कभी जागरुक होने के बारे मे सोचते है। इनको अगर बता भी दिया जाय तो यह लोग उसकों नही मानते है। कई जगह तो ऐसे भी होते है कि ठेकेदार इनको सुरक्षा से जुड़ी यह उपकरण उपलब्ध ही नही कराते है। मजदूर लोग कार्य करने के लिए दूर-दराज के गाँव से आते है, जिन्हे इनके ठेकेदार लेकर आते है। इसलिए इनकों ज्यादा पता नही होता है। यह लोग ज्यादा कुछ बोलते है तो इनके ठेकेदार इनके साथ मे दुर्व्यवहार करते है।
सवाल यह उठता है कि आखिर सुरक्षा सप्ताह को लेकर जागरुकता अभियान चलाने वाली पुलिस भी इस पर संज्ञान क्यों नही लेती है ? निश्चित तौर पर गाँव मे हो रहे भवन निर्माण की जानकारी नोएडा के हरेक पुलिस चौकी और नोएडा प्राधिकरण के सर्किल ऑफिस मे तो होते ही होंगे। अगर नही होते है तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि आखिर किसके परमिशन से निर्माण हो कार्य होते है क्या इसके लिए आर्थारिटी से नक्शा लिए भी जाते है या नही। इसके बावजूद भी भवन निर्माण मे मजदूरो की सुरक्षा ताक पर रखकर कार्य किए जाते है और पूरे सिस्टम का हाथ-पर-हाथ रखकर दुर्घटना होने तक इंतजार करना ही नियत बन गई है । दुर्घटना हो जाने के बाद कुछ लोगों को कुछ दिनों के लिए सस्पेंड कर दिए जाते है फिर वही ढाक के तीन पात। पूरे सिस्टम ही लापता है।