हार कर भी जीतना तो सिर्फ भारत के विपक्ष को आता है, ऋषि सुनक को सीखने की जरुरत है।

ब्रिटने मे हुए संसदीय चुनाव के बाद भारत के विपक्ष पर कई सवाल उठने लगे है। ऐसे तो भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों मे से एक है । लेकिन भारत मे राजनीतिक पार्टियो के गिरते स्तर और असंसदीय आचरण पूरे विश्व को झकझोर दिया है। संसद मुद्दो पर बहस के लिए होता है न कि व्यक्तिगत हमले के लिए। चुनाव काल मे हुए आरोप प्रत्यारोप और अमर्यादित भाषा भारतीय राजनीतिक को संसद तक भी पीछे नही छोड़ रहा है और नेता अपने ब्यानों के कारण जहाँ सीना चौड़ा करते घुम रहे है वही संसदीय लोकतंत्र शर्मशार हो रहा है। दूसरी तरफ बचे खुचे कमी को सोशल मिडिया सेल जो राजनीतिक दल के लिए काम करते है पूरा कर देता है। आज सरकार और समाज यह जरुर अच्छा लग रहा होगा कि मिडिया सेल एक दूसरे को गाली देकर, भ्रांति फैलाकर जनता को गुमराह करने की काम कर रही है। भगवान न करे भविष्य मे यही भयंकर अराजकता का कारण बनेगा। अभी तक तो हम धर्म के नाम पर लड़ रहे थे अब हम जाति के नाम पर लड़ेंगे और इसी का फायदा विदेशी अक्रांताओं के तथाकथित वंशज उठायेंगे।

चुनाव मे हार के बाद ऋषि सुनक ने लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को बधाई दी है और सरकार बनाने को लेकर अग्रिम शुभकामनाएँ दी है। वही पार्टी के हार के लिए पार्टी कार्यकर्ता एवं देश के जनता से माफी मांगते हुए आई एम सॉरी कहा है। बताते चले कि 650 सीटो वाली ब्रिटेन के संसद मे ऋषि सुनक को 121 सीटो पर ही संतोष करना पड़ा है। इस चुनाव मे कंजर्वेटिव पार्टी को 23.7 प्रतिशत वोट मिले है जो कि पिछले चुनाव से 20 प्रतिशत कम है। वही लेबर पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले सिर्फ 1.7 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले है। जबकि उनको 412 सीटो पर जीत हासिल हुई है। ऋषि सुनक ने लेबर पार्टी के नेता को जीत की बधाई दी और सरकार बनाने के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ भी।

वही के 543 सीटो वाली लोक सभा मे बीजेपी को 240 और कांग्रेस को सिर्फ 99 सीटो पर संतोष करना पड़ा है। सीट के हिसाब से कांग्रेस को सिर्फ 18 प्रतिशत सीट पर जीत हासिल हुई है जबकि वोट सिर्फ 21 प्रतिशत मिले है। वही दूसरी तरफ बीजेपी गठबंधन के साथ मे तीसरी बार सरकार बनाने मे कामयाबी हासिल की है। बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले 141 प्रतिशत अधिक सीटो पर जीत हासिल हुई है जबकि वोट प्रतिशत 36.56 रहा है।

भारत के विपक्ष अपने हार को स्वीकार करने के बजाय बीजेपी के 240 सीट और गठबंधन के 292 सीटो वाली सरकार को हारी हुई सरकार बताकर अपनी बेशर्मी जाहिर करने मे लगी है। जबकि विपक्ष के पूरे गठबंधन को जितने सीट मिले है उससे कही ज्यादा सीट एनडीए गठबंधन मे सिर्फ बीजेपी को मिली है। इसके बावजूद विपक्ष के द्वारा सत्ता प्राप्त कर चुकी नरेन्द्र मोदी सरकार पर राजनीतिक और व्यक्तिगत हमला करने से नही चुक रही है।

सवाल उठता है कि जिस प्रकार से ब्रिटेन के निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषिसुनक ने जनता के जनादेश को स्वीकार किया और हार को स्वीकार करते हुए लेवर पार्टी के नेता को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री बनने के लिए अग्रिम शुभकामना दिया उससे भारत के विपक्ष को सीखने की जरुरत है या ऋषि सुनक को भारत के दौरा करके यह सीखना चाहिए कि भारत मे कैसे एक जीते हुए सत्ताधारी पार्टी को अपमान करके हारी हुई साबित करने की कोशिश विपक्ष के द्वारा किए जाते है।

बीजेपी ने कहा है कि कांग्रेस और उसके इंडिया गठबंधन ने जहाँ एक तरफ खटाखट 8500 देने की बात कहकर जनता को गुमराह किया है वही दूसरी तरफ संविधान बदलने की बात झूठ बोला है। जबकि कांग्रेस स्वयं ही 10 से ज्यादा बार संविधान को बदल चुकी है। 1975 की वो इमरजेंसी! जिसने भारतीय लोकतंत्र को तार-तार कर दिया था। कैसे हम भारत के लोग उस त्रासदी को भूलकर पुनः इंदिरा गांधी को सत्ता पर बैठा दिये। उसी इमरजेंसी में संविधान के नीति निदेशक तत्वों का गला घोटते हुए जबर्दस्ती उसमें सेक्यूलर और सोसलिस्ट शब्द घुसेड़ दिया गया।

विपक्ष के झूठ ने भले ही मोदी सरकार के सीट को कम कर दिया हो लेकिन सत्ता से बेदखल करने मे नाकामयाब रही है। विपक्ष के संविधान बदलने वाली झूठ निश्चित तौर पर आरक्षण हटाने को लेकर एक भयावह झूठ बन गया और आरक्षण को अपना अधिकार मान रहे लोगों ने मोदी सरकार के सबका साथ सबका विकास के नारा को नकार दिया है।

जनता को अपने आप से मतलब है उसे क्या लेना देना है कि टेंट मे रह रहे राम लला को 500 साल बाद भव्य मंदिर मे विराजमान किया गया है। जनता को अयोध्या मे मासिक रूप से लाखों आने वाले धार्मिक तीर्थयात्रियों से क्या लेना देना है । आयोध्या का हुए कायाकल्प, या फिर यूपी मे बिजनेस व्यापार के रुप मे हुई प्रगति से जनता को कोई सरोकार नही रहा है। जनता को तो उसका संविधान चाहिए। जिसको उसने आज तक पढा ही नही कि उसमे लिखा क्या है। संविधान के दुहाई देने वाले नेता को ही नही पता कि संविधान मे कितने पन्ने होते है तो जनता को भला क्या सरोकार है। संविधान कौन बचा रहा है जिसने स्वयं ही संविधान की गला घोट दिया है।

एक ही परिवार के 6 सांसद गरीबों को न्याय देने की बात करते हुए उसी संविधान का मजाक उड़ाते है जिसमे समानता और समाज के अंतिम पायदान पर न्याय को पहुँचाने की बात करते है।

जाहिर है कि हार कर भी ऋषिसुनक जीत गए है। लोकतंत्र की मर्यादा का निर्वहन करना भी आपको जीतना सीखाता है। यह नही होनी चाहिए कि आप सत्ता मे नही है तो सत्ताधारी पार्टियों का अपमान करें। जनता के जनादेश का अपमान करे। सत्ता को भी चाहिए कि विपक्ष को पूरा सम्मान दे। यहाँ तक कि विपक्ष को ज्यादा बोलने का मौका दे। लेकिन विपक्ष जो भी बोले उसका साक्ष्य और प्रमाण हो न कि वर्तमान विपक्ष की तरह। संसद चुनावी मंच नही है। संसद देश का सर्वोच्य मंच है जहाँ से देश का नीति निर्धारित होता है। यहाँ व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप से बचने की जरूरत है। आरोप प्रत्यारोप को चुनावी मंच के लिए संभाल कर रखी जानी चाहिए। विपक्ष को कई नये नवेले सांसद से भी सीख लेनी चाहिए।