वह रे बिहार ! पार्ट : -3

गर्दन पर लटका है एससी एसटी एक्ट एवं महिला उत्पीड़न की तलवार !! कराह रहे है जनता, बुद्धिजीवी और पत्रकार !!!

लूट की राशि से मालामाल होते जा रहे हैं थानेदार, पंचायती राज्य ब्यवस्था के अधिकारी एवं पंयायत सरकार!!!! वाह रे बिहार!!!!!

दैनिक समाज जागरण, अनिल कुमार मिश्र ,ब्यूरो चीफ बिहार -झारखंड प्रदेश।

बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिले में पंचायती राज व्यवस्था की एक झलक , चौंकाने वाला है! लूट की राशि से मजबूत होते अपराधिक ढ़ाँचे के हकियत को समाचार के माध्यम से.बिहार- सरकार एवं प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों के समक्ष रखा गया ।

आतंकियों से भी क्रूर है थानेदार ! से संबंधित प्रकाशित समाचार पर पुलिस महानिदेशक बिहार प्रदेश द्वारा मामले की जाँच पुलिस अधीक्षक औरंगाबाद को दिया गया! समाचार प्रकाशित करने वाले पत्रकारों से भी संबंधित जांच पदाधिकारी द्वारा पक्ष जाना गया , फिर भी जाँच के नाम पर जाँच अधर में लटक गया । फल स्वरुप अम्बा थाना में पदस्थापित दरोगा जी का मनोबल व आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ते गया और थानेदार एवं पुलिस संरक्षित गुण्ड़ो द्वारा दमन की कार्रवाई निर्वाधगति से पीड़ित व प्रभावित जनता, पत्रकार एवं बुद्धिजीवियों तथा इनके परिवार के साथ जारी रहा। थानाध्यक्ष द्वारा पदीय शक्ति का दुरुपयोग की बात जाँच रिपोर्टर में भी वरीय पदाधिकारियों के समक्ष आया किन्तू बिहार प्रदेश के पुलिस महानिदेशक का अगले आदेश की प्रतीक्षा में आरोपित थानेदार को बचाव आजतक जारी है ।

आखिर पुलिस से जनता को नफरत क्यों है ? यह अहम सवाल भी जाँच का विषय हैं, क्योंकि आय दिन पुलिस वालों पर पब्लिक द्वारा पथराव एवं थाना एवं थानेदारों पर हमला की घटना घटती है।

अम्बा थाना में स्थापित थानेदार एवं सहायक दारोगा का लगभग 23 वर्षो का इतिहास बताता है कि अनैतिक कार्यो के विरुद्ध उठ रहे आवाज को दबाने हेतू थानाध्यक्ष द्वारा असमाजिक तत्व की बचाव में पत्रकारों, बुद्धजीवियों व शिकायत कर्ता के विरुद्ध सरासर झूठे, मनगढ़ंत व तथ्यहीन अनेको मुकदमा थानेदार द्वारा दर्ज किया गया है। जिसमें पत्रकारों, बुद्धजीवियों व शिकायत कर्ता तथा इनके परिवार को भी फसाया गया है।

अम्बा थाना में वरीय पुलिस एवं प्रशासनिक पदाधिकारियों के दर्जनों आदेश व दिशानिर्देश से यह स्पष्ट हैं कि प्रखंड़ , अंचल,अनुमंडल स्तरीय प्रशासनिक एवं पुलिस पदाधिकारियों तथा जिला पदाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के आदेश व दिशानिर्देश को अम्बा थाना के थानेदार एवं सहायक दारोगा नहीं मानते हैं । जिसका दर्जनों साक्षय अम्बा थाना के अभिलेख में मौजूद है।

जब थानेदार एवं केस के आइओ ही किसी इंसान को अपराधी बता दे और सारे जाँचदल इनके गलत मुकदमें एवं जाँच प्रतिवेदन पर मुहर लगाने के लिए विवश हों तो अंचल से लेकर अनुमंडल तथा जिला तक वरीय पदाधिकारियों का पद का औचित्य ही क्या रह जाता है।

अगर यूँ कहा जाये कि “थानेदार के कुकृत्यों के सामने “
औरंगाबाद जिले के तमाम प्रशासनिक एवं पुलिस पदाधिकारी तमाशबीन हैं और पीड़ित व प्रभावित जनता, पत्रकार एवं बुद्धिजीवी तथा इनके परिवार को न्याय देने व दिलाने में विफल साबित हो चुके है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नही होगी।

न्याय से पीड़ित व प्रभावित जनता, पत्रकार एवं बुद्धिजीवी तथा इनके परिवार वर्षो से क्यों वंचित क्यों हैं तथा असमाजिक तत्व की बचाव मे लगातार थानेदार द्वारा झूठे मुकदमें जनता व पत्रकार पर कैसे दर्ज होते आ रहे है ! यह अहम सवाल जाँच का विषय है।
शेष अगले अंक, गतांक सेआगे…..