योगदा आश्रम में मनाया गया गुरु पूर्णिमा



सम्वाददाता
नोएडा : सेक्टर 62 स्थित योगदा आश्रम में आज श्रद्धा व भक्ति के साथ गुरु पूर्णिमा मनाया गया. प्रातः स्वामी सादानंद और स्वामी आलोकानंद के दिशा निर्देशों में प्रभात फेरी निकाली गई. गुरु परमहंस योगानंद की तस्वीर एक खूबसूरत ढंग से सजाई गयी पालकी में रखी गई थी. साथ में भक्त गण भजन गाते और जयकारा लगाते हुए चल रहे थे. अत्यंत ही मनोरम दृश्य था. प्रभात फेरी के बाद एक घंटे का ध्यान किया गया. पंडाल में स्वामी नित्यानंद भी साथ ध्यान कर रहे थे.

गुरु पूर्णिमा का मुख्य समारोह 10 बजे से प्रार्थना व भजनों से शुरू हुआ. उसके बाद ध्यान के उपरांत स्वामी स्मरणानंद का प्रवचन हुआ.

स्वामी जी ने प्रवचन की शुरुआत संत कबीर के गुरु की महिमा से संबंधित दोहे को उद्धृत करते हुए की. उन्होंने कहा कि कबीर के अनुसार गर्दन कटवाने पर भी गुरु मिल जाता है तो बहुत सस्ता सौदा है. गर्दन कटवाने का मतलब सिर से ईर्ष्या, द्वेष, लालच, क्रोध आदि अवगुणों को दूर करने हैं.

उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य के बीच के संबंध को समझना बहुत मुश्किल है. स्वामी जी ने स्वं का उदाहरण देते हुए कहा कि गुरु ने ही मुझे खड़गपुर आईआईटी में रिसर्च के लिए भेजा था जहां से मैं रांची और दक्षिणेश्वर आश्रम के संपर्क में आ कर आत्मसाक्षात्कार के राह में आया. इस का आभास मुझे बाद में हुआ. उन्होंने रहस्योदघाटन करते हुए बताया कि ईश्वर को जानने के बाद ही  पता चलता है कि गुरु ही ईश्वर हैं.

स्वामी स्मरणानंद ने बताया कि जब वे दया माता और मृणालिनी माता से प्रथम बार मिले थे तो उनकी गुरु के प्रति श्रद्धा भक्ति देख कर मैं हताश हो गया. तब पता चला कि मुझमें गुरु के प्रति श्रद्धा, भक्ति, प्रेम और समर्पण का अभाव है. फिर मैंने साधना और ध्यान द्वारा इन कमियों पर विजय प्राप्त कर लिया.

उन्होंने कबीर के दूसरे दोहे को उद्धृत करते हुए कहा कि गुरु की महिमा वर्णन से परे है. उसे लिखा नहीं जा सकता है. ठीक ऐसे ही हमारे गुरु की महिमा वर्णनातीत है। गुरु में प्रेम, क्षमा, करुणा की कोई सीमा नहीं है. वे जाति धर्म देश से परे जा कर अपने ईश्वरीय ज्ञान को बांटे हैं. . गुरु में ज्ञान का भंडार है. उन्होंने अनेक शास्त्रों की सार को अनंत स्रोत से पाया है अभी तो गुरु ने बाइबल व गीता की अनोखी व्याख्या की है.

परमहंस योगानंद ने अपने शिष्यों को मेडिटेशन के लिए टेक्निक दिए हैं. इनके अभ्यास से कोई भी सच्चिदानंद को प्राप्त कर सकता है. उन्होंने बताया कि आत्मसाक्षात्कार की राह में
अनेक बाधाएँ आती हैं. गुरु जी ने ईश्वर को ऐसे नहीं पाया है उन्होंने कहा था कि उन्हें भी अनेक टेस्ट और ट्रायल से गुजरने पड़े थे.