भगवतकथा: सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष का वर्णन*

*कामता नाथ सिंह/
नसीराबाद, रायबरेली।
श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन श्रीवृंदावन धाम से पधारे विद्वान कथावाचक श्री जगन्नाथाचार्य जी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि शुकदेव मुनि ने भागवत में कहा है कि ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण थे सुदामा जी। संसार की मोहमाया से विरक्त, भगवन के प्रति आसक्त, जितेंद्रिय थे और किसी से कुछ नहीं मांगते थे। सुदामा जी ने जब भगवान कृष्ण से कुछ नहीं मांगा तो इन्सान से क्या मांगते। परिवार की गरीबी से परेशान उनकी पत्नी सुशीला ने किसी तरह उन्हें मित्र से मिलने के लिए तैयार किया। उपहार स्वरूप फटे पुराने कपड़े में चावल बांधते समय सुशीला के दो बूंद आंसू चावल में टपके, गरीबी का सन्देश कृष्ण तक पहुंच गया। मित्रमिलन से भावविहवल भगवान ने अयाची मित्र सुदामा की दरिद्रता हर ली।
भगवान कृष्ण के दरबार में दरिद्र सुदामा के पधारने की सजीव झांकी और संगीतमई कथा ने श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ी।
सुदामा के वेष में अजय द्विवेदी के अभिनय ने दर्शकों का मन मोह लिया।
महाराज परीक्षित के मोक्ष पर चर्चा करते हुए कथा व्यास ने सुनाया कि देवी सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की सन्तान थे महाराज परीक्षित। उन्होंने शिकार के लिए गए परीक्षित द्वारा वृद्ध ऋषि शमीक के गले में मृत सर्प डालने, ऋषि पुत्र श्रृंगी के तक्षक नाग द्वारा राजा को डसने का श्राप देने, पुत्र के इस अविवेक से दुखी ऋषि द्वारा महाराज परीक्षित को सूचना भेजने की कथा सुनाई। इसके बाद उन्होंने महाराज परीक्षित द्वारा अपने पुत्र जनमेजय को राजपाट सौंपकर सुरक्षित होकर रहने और शुकदेव जी से सात दिन तक कथा सुनकर मोक्ष प्राप्त करने के प्रसंगों का रोचक वर्णन किया।
मुख्य यजमान भवानी प्रसाद द्विवेदी और श्रीमती शकुंतला द्विवेदी, देवी प्रसाद द्विवेदी, माता प्रसाद द्विवेदी, कामता नाथ सिंह,अंबिका प्रसाद द्विवेदी, देवी बख्श सिंह, अशोक द्विवेदी, श्याम बहादुर सिंह, चन्द्र मौलि सिंह, उमापति त्रिपाठी, राज नारायण द्विवेदी, शत्रोहन सिंह, वरुण द्विवेदी, राम सिंह तथा पुरुषों से दोगुना से भी अधिक संख्या में श्रद्धालु महिलाओं ने कथा सुनी और आरती में शामिल हुईं।