चैती काली पूजा विधि विधान पूर्वक किया गया।



अपने आप को समर्पित करके पूजा पाठ करने से मोक्ष मिलती है•••••••अनादि गोस्वामी
दैनिक समाज जागरण प्रखण्ड संवाद दाता विपुल गोस्वामी फतेहपुर जामताड़ा (झारखण्ड)
हिन्दु सनातन धर्मावलंबी का जीवनचर्या पूजा पाठ से ही शुरू होता है। सदियों से यह परंपरा को अपना आधार भूत मानकर हिंदू समुदाय के लोग विभिन्न देवताओं का सानिध्य मंदिर में जाकर समर्पित भावनाओं से माथा टेकते हैं। इसी सिलसिले में 33 कोटी देवताओं में से चैती काली पूजा अर्चना आज विभिन्न हिंदू बहुल प्रांत में करते चले आ रहा है। इसी मे एक फतेहपुर प्रखंड के सिमलाडंगाल पंचायत के अंतर्गत जोरडिहा गांव में चैती काली मां की पूजा अर्चना विधि विधान पूर्वक किया गया। पूजा अर्चना में मूल रूप से पुरोहित के रूप में अनादि गोस्वामी ने पूरा किया। ढोल डाक शंख तथा उलूध्वनी के बीच सम्पन्न हुआ। बता दें यह पूजा अर्चना वार्षिक है उसमे महीना के शनिवार और मंगलवार को ही किया जाता है। पूजा अनुष्ठान में सक्रिय रूप से गांव के गड़ात दिलीप बाउरी तथा पूजा में अपना अहम योगदान साथी कुमारी कर रही थी। मौके पर श्रद्धालु एवं भक्तों अपने मन्नत को मनाने तथा जिसका मन्नत पूरा हो गया है। वह अपने गछती (कबुल) पूरा करने में मां के दरबार में बैठे हैं। विशेष बात यह है कि पूर्व में परंपरा के अनुसार छाग तथा बकरा का बलि की प्रथा चलते आ रहा था। लेकिन इस दौरान अनादि गोस्वामी ने बताया कि छाग बकरा का बलि मां के सानिध्य में देना सही नही समझा । मेरा विवेक ने यह कर्मों को कबूला नहीं । इसलिए हम संज्ञान लेते हुए कई वर्षों से निरामिष पूजा अर्थात बिना बलि से ही पूजा पाठ शुरू कर दिए। वैसे ही पूजा अर्चना करते आ रहे हैं छाग व बकरा बलि देना बड़ी बात नहीं है ।आपने ॠतुओ को अनुशासित करके माॅ के सानिध्य होकर अपने आप को समर्पित भाव से पूजा करने से परम शांति एवं मोक्ष को प्राप्त होती है।