गरुड़ सहित अन्य पक्षियों के शिकार के मामले में संलिप्त शिकारियों की पहचान के बावजूद प्रशासन की निष्क्रियता,
*”आलमनगर थाना क्षेत्र के हरजोरा घाट में विभिन्न प्रवासी पक्षियों, जंगली सुअर, नीलगाय और गरुड़ का शिकार किया गया था, गरुड़ के संरक्षण को लेकर गंभीर चिंता”*
मधेपुरा ।
भगवान विष्णु के वाहन के रूप में प्रतिष्ठित गरुड़ की प्रजाति को एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल, मधेपुरा जिले के आलमनगर थाना क्षेत्र के हरजोरा घाट पर विभिन्न प्रवासी पक्षियों, जंगली सुअर, नीलगाय और गरुड़ का शिकार किया गया था। इस शिकार को करने वाले कथित शिकारियों ने शिकार के बाद गरुड़ के मांस का सेवन किया और शराब, शबाब के साथ डीजे की धुनों पर दो-तीन दिन तक जश्न मनाया।
यह घटना ना केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भी उठाई गई थी, जिसमें वन अधिकारी एके द्विवेदी ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया था। बावजूद इसके, प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। एक साल का समय बीतने के बाद भी यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया, जिससे प्रशासन की उदासीनता और शिथिलता को उजागर किया जा रहा है।
हालांकि शिकारियों की पहचान हो चुकी है, लेकिन उनके नाम और जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। यही नहीं, शिकार में इस्तेमाल किए गए हथियारों की अनुज्ञप्ति भी रद्द नहीं की गई है। यह स्थिति प्रशासन की विफलता और मिलीभगत को दिखाती है, जिससे स्थानीय लोग और सामाजिक संगठनों में भारी नाराजगी है।
*स्थानीय स्थिति*
गौरतलब है कि, उदाकिशुनगंज अनुमंडल के विभिन्न प्रखंडों में पीपल और कदम्ब जैसे वृक्षों पर गिने-चुने गरुड़ के घोंसले दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। एसएच 58 मुख्य सड़क के पास स्थित एक पीपल के पेड़ पर भी गिने-चुने गरुड़ का बसेरा देखा गया है, जो अब संकट में है। स्थानीय समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर प्रशासन ने शिकारियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की, तो यह प्रजाति भी अन्य विलुप्त हो रही प्रजातियों की तरह खत्म हो सकती है।
*शिकारियों के बारे में जानकारी*
शिकारियों ने गरुड़ के अलावा अन्य संरक्षित और प्रवासी पक्षियों का शिकार किया। इसके साथ ही, नीलगाय जैसे जंगली जानवरों का शिकार कर उनका मांस और चमड़ा सहरसा जिले के एक पूर्व विधायक के माध्यम से व्यापार किया गया। सूत्रों के अनुसार, शिकारियों ने आलमनगर के हरजोरा घाट में कैंप लगाकर कई दिनों तक इस अवैध शिकार को अंजाम दिया, लेकिन प्रशासन ने इसे नज़रअंदाज किया।
*प्रशासन की निष्क्रियता*
मामले की जानकारी पहले ही प्रशासन को दी जा चुकी थी, और दर्जनों सबूत और तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थीं। बावजूद इसके, प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। वन विभाग और अन्य प्रशासनिक अधिकारी अब तक सिर्फ पत्राचार में ही लगे हुए हैं या सीमांकन की बातें कर अपने कर्तव्यों से पलायन कर रहे हैं।
इस मामले पर बोलते हुए, सामाजिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की निंदा की है। उनका कहना है कि अगर शिकारियों पर कार्रवाई नहीं की गई तो यह प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो जाएगी, जैसा कि गौरैया और अन्य पक्षियों के साथ हो चुका है।
यदि प्रशासन ने समय रहते इस मामले में कार्रवाई नहीं की, तो गरुड़ की प्रजाति के लिए यह एक बड़े संकट की घड़ी हो सकती है। गरुड़ के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर तुरंत कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। वन अधिकारी एके द्विवेदी द्वारा दिए गए आश्वासन को अब तक पूरा नहीं किया गया है, जिससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या प्रशासनिक उदासीनता के कारण गरुड़ की प्रजाति विलुप्त हो जाएगी।
अब यह देखना होगा कि क्या प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करके गरुड़ जैसी महत्वपूर्ण प्रजाति को बचा पाएगा या नहीं।