गाजर घास जागरूकता सप्ताह अभियान में दी गयी महत्वपूर्ण जानकारियां…खरपतवार खेती को जड़ से उखाड़ फेंकने दिए गए टिप्स.. अभियान में जुड़े लोग….



समाज जागरण संवादाता विवेक देशमुख

बिलासपुर। कृषि विज्ञान केंद्र में 17 वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया गया, जो 16 से 22 अगस्त तक चला, इस अभियान में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. एसपी सिंह, डॉ. शिल्पा कौशिक, पंकज मिंज, डॉ, निवेदिता पाठक, डॉ. चंचला पटेल, और कृषि विज्ञान केंद्र के अन्य लोगो ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग किया। दिनांक 16/08/2022 को गाजरघास जागरूकता अभियान की शुरुआत कृषि विज्ञानं केंद्र बिलासपुर से हुई इसके बाद दिनांक 17/08/2022 को ग्राम बहतराई ब्लॉक बिल्हा मई गाजरघास जागरूकता अभियान मनाया गया जिसमे ग्राम बहतराई से माधो सिंह प्रफ्फुल सिन्हा, तारा सिंह सहित 30 कृषकों ने भाग लिया इसके साथ ही अभियान के तहत दिनांक 18/08/2022 को उच्चतर माध्यमिक शाला राजेंद्र नगर चौक में किया गया जिसमे शाला के प्राचार्य डॉ ऍम अल पटेल, श्री वि. के स्वर्णकार श्री सी. पि पांडेय, श्रीमती रश्मि दिवेदी तथा स्कूल के 250 बच्चे उपस्थित रहे तथा कार्यक्रम को सफल बनाया।

जिन्होंने बताया कि गाजर घास यानी पार्थेनियम को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों जैसे काग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चादनी, गधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है। हमारे देश में 1955 में दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है। यह मुख्यतः खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रो, बगीचों, पार्को, स्कूलों, रहवासी क्षेत्रों, सहक तथा रेलवे लाइन के किनारों आदि पर बहुतायत में पायी जाती है। पिछले कुछ वर्षों से इसका प्रकोप सभी प्रकार की फसलों, सब्जियों एवं थानों में भी बढ़ता जा रहा है। वैसे तो गाजरपास पानी मिलने पर वर्ष भर फल-फूल सकती है परंतु वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह एक भीषण खरतपतवार का रूप ले लेती है। गाजरयास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3-4 पीढ़ियां पूरी हो जाती है। गाजरघास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (डरमेटाइटिस), एक्जिमा, एलर्जी, बुखार दमा आदि जैसी बीमारियाँ हो जाती है। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य मृत्यु तक हो सकती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्याधिक विषाक्त होता है। गाजरपास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियों खत्म होने लगती है। जैव विविधता के लिये गाजरपास एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है। इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है। भारत में, यह फसली और गैर-फसली भूमि, शहर के आवासों, रेल और सड़क के किनारे और संस्थानों के परिसरों में गंभीर समस्या बन चुका है। इस खरपतवार के प्रबंधन के लिए कई क्षेत्रों के विशेषज्ञों को समस्या से निपटने के साथ-साथ स्वास्थ्य खतरों के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है भाकृअनुप खरपतवार अनुसंधान निदेशालय ने गाजरघास प्रबंधन और इसके उपयोग के लिए बहुत प्रभावी प्रौद्योगिकिया विकसित की है। इसके अलावा, यह “स्वच्छ भारत अभियान की एक प्रमुख गतिविधि के रूप में अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है और इसलिए सभी संस्थानों, विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों को जल्द से जल्द गाजरघास मुक्त परिसर सुनिश्चित करना चाहिए। निदेशालय द्वारा इस वर्ष 16-22 अगस्त तक पूरे देश में सोलहवे गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। मैं विश्वविद्यालयों, संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों के सभी लोगों से “स्वच्छ भारत अभियान के एक घटक के रूप में इस गतिविधि में भाग लेने और “गाजरघास मुक्त परिसर सुनिश्चित करने की अपील की गई है। वही इसके बचाव को लेकर भी अनेक उपाय बताए गए है