महाकाल ,महा ‘ फाल ‘ को सम्हालिए


हम और हमारा देश इस समय महाकाल को सम्हालने में लगे हैं ,क्योंकि हमारी धारणा है कि -‘ एकहि साधे सब सधे ‘ की है .हमें लगता है कि यदि हमने महाकाल को साध लिया तो कोई भी हमारी सत्ता और अर्थव्यवस्था का बाल बांका नहीं कर सकता .लेकिन हकीकत इसके उलट है. महाकाल की कृपा हमारे रूपये पर रत्ती भर नहीं हो रही है .महाकाल लगता है ‘बसुधैव कुटुंबकम ‘ की अवधारणा में यकीन नहीं करते. उनकी कृपा यूक्रेन पर भी नहीं हो रही है. वहां साढे सात महीने से तबाही मची है ,लेकिन कोई रोकने वाला नहीं है .
बात देश के रूपये के महा ‘ फाल ‘ की हो रही है. देश की जनता चूंकि डालर नहीं रुपया बापरती है इसलिए उसे पता नहीं है कि डालर के मुकाबले रूपये के गिरने का क्या मतलब होता है ?.और जो इसका मतलब जानते हैं वे राजनीति के नहीं अर्थशास्त्र के लोग होते हैं. उनकी आवाज नक्क्कार खाने में तूती की आवाज की तरह कहीं दबकर रह जाती है .वे भी दो तरह के होते हैं. एक सत्ता के भक्त और दूसरे सत्ता के विरोधी .जनता के सामने सत्ता के भक्त अर्थशास्त्रियों का ज्ञान परोसा जाता है .
हमारे एक विद्वान सत्तांध साथी जब भी रूपये के गिरने की बात होती है वाट्सअप विश्व विद्यालय से प्राप्त ज्ञान उड़ेल देते हैं. कहते हैं -क्या आप भी रूपये और डालर को लेकर हंगामा करते रहते हैं ? अरे भाई रुपया डालर के मुकाबले ही तो कमजोर हुया है लेकिन ब्रिटिश पोंड ,यूरो और येन के मुकाबले तो मजबूत हुआ है ! आप लोग इसकी बात क्यों नहीं करते ? अब उन्हें कौन समझाये कि हम ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया डालर से ही अपनी मुद्रा की सेहत को नापती आ रही है ,पोंड,यूरो या येन से नहीं .
बहरहाल रुपया डालर के मुकाबले लुढ़कते-लुढ़कते जहाँ आ पहुंचा है ,वहां से उसे अब वापस पुराने स्तर पर लाना कठिन काम है .गिरा हुआ रुपया हो या नेता या सत्ता वापस पुराने स्तर पर शायद ही कभी आते हों ,क्योंकि जो एक बार गिरना शुरू हो जाता है उसे महाकाल भी नहीं रोक सकते .रुपया आज 82 .80 का है ,जबकि येन 65 .10 पैसे का .हमारी सरकार का कोई अर्थशास्त्री हमारी जनता को ये नहीं बताता कि दुनिया की दूसरी मुद्राएं यदि डालर के मुकाबले लुढ़कती हैं तो सम्हलती भी हैं,लेकिन रूपये को तो सम्हलना आता ही नहीं .रुपया केवल लुढ़कता है .
ब्रिटेन का पोंड 3 जनवरी को लुढ़ककर 100 .35 पैसे का हुआ तो 10 जनवरी को सम्हलकर 91 .32 का हो गया. यूरो 84 .30 से 80 .15 का हो गया ,येन भी 64 .43 से 56 .10 पर आ गया लेकिन रुपया 74 .31 से जो लुढ़का तो 82 .40 पर आ गया .उसने एक बार भी उठने हुआ सम्हलने की कोशिश नहीं की.रूपये को सम्हालने वाले हाथ देश में राज्यों की सत्ताओं को खरीदने,गिराने और केंद्र की सत्ता को सम्हालने में ही लगे हुए हैं.उन्हें रूपये की फ़िक्र ही नहीं है ,क्योंकि किसी के बाप का क्या जाता है ?
देश -दुनिया के जो अर्थशास्त्री स्थितिप्रज्ञ हैं वे बताते हैं कि-‘अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहा है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ रही है. इसके चलते, रुपए समेत अन्य मुद्राएं लगातार कमजोर हो रही हैं. लेकिन, हर देश की मुद्रा को उसके बुनियादी कारण भी प्रभावित कर रहे हैं. उदाहरण के लिए ब्रिटेन की ही नहीं भारत की भी राजकोषीय हालत बहुत खराब है. ब्रिट्रेन का तो मिनी बजट ‘बैक-फायर’ कर गया. इसके चलते पाउंड में रिकॉर्ड गिरावट आई है. ज्यादातर देशों में महंगाई से निपटने को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि ‘ग्रोथ’ की बात पीछे चली गयी है .
दुर्भाग्य ये है कि देश का कोई भी राष्ट्रवादी अर्थशास्त्री आम जनता को रूपये कि गिरने कि नुक्सान नहीं बताता,वो बताता है की हमारी ग्रोथ रेट देखो.महंगाई मत देखो .जबकि रूपये कि कमजोर होने से आम आदमी की कमर टूटी जा रही है. आम आदमी जिस डीजल -पेट्रोल का इस्तेमाल करता है उसकी कीमतें लगातार बढ़ीं हैं.बैंक से ऋण लेता है तो उसके ऊपर ब्याज का बोझ लगातार बढ़ा है,यदि अपने बच्चे को विदेश में पढ़ने की जुर्रत करता है तो उसका खर्च भी लगातार बढ़ रहा है. रूपये कि कमजोर होने का लाभ निर्यातकों को होता है ,जो डालर में भुगतान पाते हैं. दवा,कृषि उत्पाद और सूचना तकनीक से जुड़े निर्यातक मालदार हो रहे हैं और इनका इस्तेमाल करने वाले लगातार कमजोर हो रहे हैं .लेकिन फ़िक्र कौन करे ?
देश का दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य कहिये कि इस देश में जो भी सरकार है वो भगवान कि भरोसे चलती है.आजकल की तो सौ फीसदी भगवान के भरोसे है. सरकार को रूपये की नहीं बाबा विश्वनाथ और महाकाल की फ़िक्र है. सरकार रूपये को सम्हालने कि बजाय भोले बाबा को खुश करने में लगी है .ये सरकार का निजी मामला है .कोई हस्तक्षेप कैसे कर सकता है ? करेगा तो शिवद्रोही कहलाने लगेगा .शिवद्रोहियों को वैसे भी राम जी पसंद नहीं करते.सपने में भी पसंद नहीं करते .इसलिए रामभरोसे चलने वाली सरकार शिवजी की सेवा में लगी हुई है .शायद शिवजी की कृपा से ही रुपया और देश की किस्मत संवर जाए !
सरकारी खजाने में विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया है जबकि शिवजी की कृपा से इसे भरना चाहिए था .विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है ,जबकि भोले बाबा की कृपा से इसे भी कम होना चाहिए था .मंहगाई बढ़ने की तो हम बात ही नहीं कर सकते,क्योंकि ऐसा करना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है .इसलिए जनता कि लिए मुफीद यही है कि वो सब कुछ भूलकर महाकाल लोक में जाये और आनंद का अनुभव करे. इस लोक में जनता को कुछ देर कि लिए ही सही किन्तु रूपये कि गिरने और मंहगाई कि बढ़ने कि दर्द से राहत जरूर मिलेगी .
हिन्दू देवी -देवताओं में शिव मुझे भी सर्वाधिक प्रिय लगते हैं. वे औघड़ हैं. ज्यादा मेकअप-सेकप नहीं करते.हिमालय पर रहते हैं,उन्हें किसी सेंट्रल विष्टा की जरूरत नहीं पड़ती. वे दिन में पांच बार कपडे नहीं बदलते.राजकाज कि फेर में नहीं पड़ते.पत्नी का सम्मान भी करते हैं और पशुप्रेमी भी हैं .ज़रा से जलाभिषेक से खुश हो जाते हैं.आप उन्हें जहरीला आक पुष्प और बिल्व पत्र चढ़ाकर खुश कर सकते हैं .वे लड़ाई झगड़े से दूर रहते हैं. सबकी मदद करते हैं .जन कल्याण के लिए रूप बदल लेते हैं .मार्डन इक्यूप्मेंट्स का इस्तेमाल बहुधा नहीं करते .अपना तीसरा नेत्र भी अक्सर बंद ही रखते हैं .आइये ऐसे भोले बाबा से प्रार्थना करें कि वो हमारे लगातार गिरते रूपये को सद्बुद्धि दें कि वो गिरना छोड़ दे,क्योंकि यदि रुपया गिरता है तो देश की इज्जत भी गिरती है ,देश कि पहरेदारों की भी इज्जत गिरती है.
@ राकेश अचल