दैनिक समाज जागरण अनील कुमार संवाददाता नबीनगर (औरंगाबाद)
नबीनगर (बिहार) सोमवार को सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लंबी आयु, दीघार्यु और खुशहाली के लिए बट वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना किया। परंपरा और शास्त्रों के अनुसार सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे एकत्रित होकर पूरे 16 श्रृंगार कर जुटे और बांस का पंखा, चना, लाल या पीला धागा, धूपबती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि पूजा सामानों के साथ पूजा अर्चना की। वही पेड़ के नीचे बैठक कर सत्यवान एवं सावित्री की कथा ब्राह्मणों से सुनी। इस दौरान वट वृक्षों के नीचे दिनभर श्रद्वालु महिलाओं की और से पूजा अर्चना का दौर बताए गए विधि के अनुसार अपने पति के लंबी आयु और संतान के लिए पूजा अर्चना किया और वट वृक्ष मे रक्षा सूत्र बांधकर वृक्ष की परिक्रमा किया। वहीं दीप धूप जलाकर पूजन सामग्री अर्पित किया और ब्राह्मणों से कथा सुनकर दान दक्षिणा दिया। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री ने यमराज को अपने पति सत्यवान के प्राण को लौटाने पर विवश कर दी थी। इसलिए विवाहित स्त्रियां पति की दीघार्यु और सकुशलता की कामना के लिए बट सावित्री व्रत करती है। इस कथा का प्रमाण पुराणों मे भी मिलता है। कथा के अनुसार ज्येष्ट मास के अमावस्या तिथि को ही यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लिए थे लेकिन सावित्री ने सती धर्म का पालन करते हुए यमराज को सत्सावन का प्राण लौटाने पर मजबूर कर दी। तब से परंपररा के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सुहागिन महिलाए वाट सावित्री व्रत करती हैं और अपने पति को दीघार्यु और सकुशल होने की कामना करती है। वट सावित्री पूजा की यह मान्यता है कि बटवृक्ष के पूजन से महिलाए सुहागिन रहती है। इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा अखंड सौभाग्य, अक्षय उन्नति आदि के लिए वृक्ष की पूजा की जाती है। वैसे तो इस व्रत में तीन दिवसीय उपवास का प्रवाधान है, परंतु अधिकांश क्षेत्रों में वट सावित्री व्रत में व्रती एक दिन अर्थात केवल ज्येष्ठ अमावस्या को ही व्रत रखने है। वट वृक्ष की में ब्रहमा, विष्णु और महेश का वास होता है। वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उनके तने में 108 बार कच्चा धागा लपेटा जाता है। हालांकि असमर्थता की स्थिति में सात बार धागा लपेटने का प्रावधान है।