सरकारी विद्यालयों से कहीं बहुत अच्छे , गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर निजी विद्यालय द्वारा ठगे जा रहे हैं अभिभावक,

इधर कुआं ,उधर खाई वाली कहावत , बच्चों के अभिभावकों के साथ हैं चरितार्थ !

बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिला में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर बच्चों के भविष्य के साथ सरेआम हो रही है खिलवाड़।

जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा भी मनमानी तरीकों से निजी विद्यालयों को संचालन का है छूट‌,आखिर जबाबदेह कौन?

समाज जागरण, अनिल कुमार मिश्र, ब्यूरोचीफ बिहार- झारखंड प्रदेश।

03अक्टूबर 2023

बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिले का कुटुम्ब विधानसभा क्षेत्र में संचालित अधिकांश निजी विद्यालय मानक बिंदु को भी पूरा नहीं कर पाते हैं फिर भी रिश्वत की दौर में जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा आंख मुंदकर निजी विद्यालयों को संचालन की छूट/अनुमति हैं।

बच्चों के अभिभावकों के साथ इधर कुआं ,उधर खाई वाली कहावत हैं चरितार्थ ! गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर जहां अधिकांश निजी विद्यालयों द्वारा अभिभावकों को लूटा जा रहा हैं। वहीं अभिभावकों के नस को टटोलकर कुटुम्ब विधानसभा क्षेत्र में कुकुरमुते की तरह निजी विद्यालयों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। अधिकांश विद्यालय मानक बिंदु को पूरा नहीं कर पाते हैं फिर भी रिश्वत की दौर में जिला शिक्षा पदाधिकारी औरंगाबाद द्वारा आंख मुदकर निजी विद्यालयों को संचालन की अनुमति दे दिया जाता है, जो बेहद चिंता का विषय है एवं बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

अधिकांश निजी विद्यालयों में 1000 एक हजार रुपए से डेढ़ हजार 1,500 रूपये तक के शिक्षक एवं शिक्षिका बच्चों को पढ़ाने के लिए रखे जाते हैं। जो सरकारी विद्यालयों के शिक्षक से भी निम्न स्तर की शिक्षक व शिक्षिका होते हैं । हल्लाकि पंचायत द्वारा नियोजित शिक्षक की स्तर भी निजी विद्यालयों में 1000 से 1500 रुपए तक बच्चों को पढ़ने वाले शिक्षकों की तरह है।
विश्व सूत्रों की बात मान ली जाए तो सभी नियमों की ताकत पर रख के निजी विद्यालय का निबंध लेने वाले विद्यालय के संचालकों द्वारा एक विद्यालय के नाम पर अनेकों जगह अपना निजी विद्यालय का संचालन भी कराया जा रहा है जो गंभीर आरोप एवं जांच का विषय है।

बच्चों के अभिभावकों के पास इधर कुआं उधर खाई वाली कहावत चरितार्थ है! गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर जहां निजी विद्यालयों के संचालकों द्वारा अभिभावकों को लूटा जा रहा हैं। वही निजी विद्यालयों के सहयोग से सरकारी विद्यालयों से मिलने वाले पारितोषिक उनके संतोष का विषय है।