संसदीय सीट अररिया: बात है यह भितरिया

कर न दे बर्बाद विरासत का विवाद! राजद की नजर यादव पर……

तेजस्वी जी ! अररिया मुस्लिम बहुल दिखता है पर, वास्तव में वैसा है नहीं.आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में 56.6 प्रतिशत हिन्दू हैं,तो मुस्लिम आबादी 42.9 प्रतिशत है।अररिया का एम+वाई फैक्टर तब दिखाएगा जब यहां से योग्य यादव होगा उम्मीदवार ? यादव यहां 15 फीसदी है।मुसलमान+यादव = 57.9%।

पटना/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

सामाजिक दृष्टिकोण से देखें, तो सरसरी तौर पर अररिया मुस्लिम बहुल दिखता है. आम समझ में भी ऐसी ही कुछ बात है. पर, वास्तव में वैसा है नहीं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में 56.6 प्रतिशत हिन्दू हैं,तो मुस्लिम आबादी 42.9 प्रतिशत है. मतदाता 32 प्रतिशत हैं. चुनावों में मतों का धु्रवीकरण आमतौर पर साम्प्रदायिक आधार पर हो जाया करता है. स्वाभाविक लाभ भाजपा को मिल जाता है. मुस्लिम उम्मीदवार की जीत तभी होती है जब साम्प्रदायिक आधार पर धु्रवीकरण नहीं होता है. यानी दूसरे समुदाय के मत मिलने या फिर मैदान में उस समुदाय के दो मजबूत उम्मीदवार रहने पर ही उसका मंसूबा फलीभूत हो पाता है. क्षेत्र के लोगों की मानें, तो भारत-नेपाल के इस सीमावर्त्ती क्षेत्र का सामाजिक समीकरण काफी जटिल है.
नजर डालें लोकसभा चुनाव वर्ष 2009,2014 उपचुनाव 2018 एवम संसदीय चुनाव 2019 पर

2009 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतों का विभाजन हुआ तो भाजपा के प्रदीप सिंह को 38.7% एलजेपी के जाकिर हुसैन 35.6% एवम कांग्रेस के
शकील अहमद को 6.8% मत मिला ।जब अररिया में हिंदू वोट बंटा तो 2014 लोकसभा चुनाव में तस्लीमुद्दीन राजद 41.18%,
प्रदीप सिंह भाजपा को 26.80%,
विजय मंडल जद यू को 22.73% मत लाया। लोकसभा उपचुनाव 2018 में तस्लीम बाबू के निधन पर सहानुभूति मत एवम हिंदू वोट बंटा तो सरफराज आलम राजद को 49.15%,प्रदीप सिंह भाजपा को 43.19%,उपेंद्र सहनी को 1.81%,सुदामा सिंह को 1.10%एवम प्रिंस विक्टर को 2.02% मत प्राप्त हुए। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में
हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण हुआ तो
प्रदीप सिंह भाजपा को 52.87%
सरफराज आलम राजद 41.14% मत लाकर सिमट गए।
हिन्दुओं में यादव और मंडल मतों की संख्या अधिक है. दलित और आदिवासी समाज के मत भी बड़ी चुनावी हैसियत रखते हैं. दलितों की आबादी 13.61 प्रतिशत है तो आदिवासियों की 01.39 प्रतिशत. यह कहा जाये कि इस क्षेत्र के चुनाव का रुख दलित मतदाता तय करते हैं, तो वह चौंकने वाली कोई बात नहीं होगी. दिलचस्प बात यह कि वहां ब्रह्मर्षि और क्षत्रिय समाज से कहीं ज्यादा आबादी ब्राह्मणों की है।
सांसद बनना चाहते हैं शाहनवाज आलम

चुनावों में हार-जीत अपनी जगह है. राजनीति महसूस करती है कि तसलीम उद्दीन के निधन के बाद उनके जनाधार में तो भटकाव आया ही है, परिवार में भी बिखराव हो गया है. एक ही दल राजद में रहते हुए भी सरफराज आलम और उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। बड़े भाई मोहम्मद मोकीम और सरफराज पुत्र गुलाब की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कभी-कभी उफान खाने लगती हैं. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि शाहनवाज आलम अब सांसद बनना चाहते हैं. अररिया से राजद की उम्मीदवारी पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं. क्षेत्र में सक्रिय भी हैं.

पर, उम्मीदवारी को लेकर इत्मीनान सरफराज आलम ऐसा शायद ही होने देंगे. राजद नेतृत्व सुलह करा दे, तो वह अलग बात होगी. अन्यथा दो भाइयों में कथित रूप से पसरी यह रार उसकी संभावनाओं को सिकुड़ा दे सकती है. राजद के समर्थकों का मानना है कि पार्टी नेतृत्व इस विवाद को सलटाने की पहल अवश्य करेगा. इसलिए भी कि उसका भविष्य इन दो भाइयों की अनपेक्षित तकरार में उलझ गया है. हालांकि, वर्तमान में खुले रूप में रार या तकरार जैसी कोई बात नहीं दिख रही है. पर, करीब के लोग बताते हैं कि अंदरुनी तौर पर दांव खूब खेले जा रहे हैं. वैसे, दोनों भाई ऐसी किसी रार या तकरार की बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं.
सरफराज आलम जिम्मेवार
स्थानीय लोगों की मानें तो तसलीम उद्दीन के परिवार में तकरार के लिए मुख्य रूप से सरफराज आलम जिम्मेवार हैं. आपसी सहमति से संसदीय क्षेत्र की विरासत उन्हें और विधानसभा क्षेत्र की शाहनवाज आलम को मिल गयी थी. तब उन्हें (सरफराज आलम) विधानसभा क्षेत्र में टांग नहीं घुसाना चाहिये था. लेकिन, टांग घुसा उन्होंने खुद का ही नहीं, परिवार और पार्टी का भी अहित कर दिया. तटस्थ लोगों का कहना है कि सरफराज आलम जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में रुचि नहीं दिखाने की शपथ खा लें, तो तकरार पूरी तरह से खत्म हो जा सकती है. संसदीय चुनाव में उन्हें शाहनवाज आलम का पूरा साथ मिल जा सकता है. पर, ऐसा होगा इसकी कोई संभावना बनती नजर नहीं आ रही है.
किसका कटेगा… किसको मिलेगा
क्षेत्र में लोगों के बीच संस्पेंस बना हुआ है कि किस भाई का टिकट कटेगा और किसे मिलेगा आर जे डी का सिंबल।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जो तेजस्वी माय और बाप समीकरण अर्थात अपने को ए टू जेड की पार्टी कहती है तो भाजपा को हराने के लिए वे यादव या अति पिछड़ा वर्ग से कैंडिडेट दे तो सीट निकाल सकता है अन्यथा यह सीट पूर्व की भांति मुकद्दर का सिकंदर भाजपा उम्मीदवार प्रदीप सिंह को गाली देकर भी मोदी के नाम पर ईवीएम में उसके निशान पर बटन दबा कर देने को बाध्य होगा। क्योंकि अंतिम समय में यहां हिंदू मुस्लिम की हवा तेज होने लगती है और यहां हिंदू वोटर मुस्लिम से अधिक है।
यादव और अति पिछड़ा उम्मीदवार की चर्चा
यूं तो अररिया जिला अति पिछड़ा जिला के नाम से विख्यात है। अति पिछड़ा वर्ग मंडल बाहुल्य मतदाता वर्ग से आने वाले पूर्व विधायक स्वर्गीय मुरलीधर मंडल के सुपुत्र वंचित मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सिकटी के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी डा. शत्रुध्न मंडल एवम यादव बिरादरी से आने वाले पूर्व डीएसपी सह पटना साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डा. अखिलेश कुमार के नामों की राजद खेमा एवम पार्टी नेतृत्व के बीच टिकट देने को लेकर मंथन जारी है। एम वाई समीकरण में यादव मत जो आरजेडी का उसे तभी ला पाएगा जब कैंडिडेट यादव का होगा।
बहरहाल देखना दिलचस्प यह होगा कि राजद नेतृत्व मुस्लिम बड़े राजनीतिक परिवार को तवज्जो देता है या यादव और अति पिछड़ा उम्मीदवार को।