बड़हिया में विख्यात मां बाला त्रिपुर सुंदरी की महिमा है निराली : प्रो डॉ प्रियरंजन सिंह

समाज जागरण लखीसराय


– इस मंदिर में पूजन करने से मानसिक शांति मिलती है: डॉ प्रियरंजन सिंह

लखीसराय
बिहार के आस्था के प्रतीक मां बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर में पटना एएन कॉलेज के प्रोफेसर डॉ प्रियरंजन उर्फ मुन्ना सिंह ने दर्शन एवं पूजन अर्चना किया पूजा अर्चना के बाद डॉ प्रियरंजन सिंह ने कहा कि बिहार के बड़हिया मे अवस्थित श्रीधर ओझा जी द्वारा स्थापित 156 फीट ऊंचाई वाली संगमरमरी मंदिर में विराजमान मां वाला त्रिपुर सुंदरी माता की महिमा निराली है। श्री सिंह ने और कहा कि सुख शांति और मानसिक शांति के लिए मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं मंदिर में प्रवेश करते ही शांति मिलना शुरू हो जाती है। अभय कुमार, प्रेम कुमार, अरुण कुमार,संजय कुमार पहलवान, हर्ष राज आदि पूजा अर्चना के दौरान उपस्थित थे। बताते चलें कि बड़हिया के लोगों का मानना है कि यहां का जनजीवन देवी की कृपा से ही समृद्ध और सदा सुरक्षित है। दुर्गा पूजा के दौरान यहां भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है। हालांकि साल भर प्रत्येक शनिवार और मंगलवार को मां को मत्था टेकने श्रद्धालुओं का पहुंचना जारी रहता है। मान्यता है कि बड़हिया गांव के ही श्रीधर ओझा जम्मू कश्मीर में स्थापित मां वैष्णो देवी की उपासना किया करते थे। मां ने उन्हें एक बार दर्शन दिया और कहा तुम अपने गांव जाओ मैं वहां आऊंगी। बड़हिया के जिस स्थान पर माता बाला त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थापित है, उसी के नजदीक से गंगा बहा करती थी। शाक्त बंधुओं ने की गांव की स्थापना
बड़हिया गांव की स्थापना करने वाले श्री पृथु ठाकुर और श्री जय जय ठाकुर जगन्नाथपुरी जाने के क्रम में गंगा पार करके इसी गांव में रात्रि विश्राम के लिए ठहरे थे। कहा जाता है कि दोनों सहोदर भाई मैथिल कुलभूषण थे। दरभंगा के समीप संदहपुर ग्राम में मैथिल ब्राह्मणों के योग्य परिवार में इनका जन्म हुआ था। ये धर्म निष्ठ, शास्त्रज्ञ और त्रिकालदर्शी थे। तंत्र शास्त्र के ये प्रकांड पंडित। जिस स्थान पर माता का मंदिर स्थापित है, वहां इन दोनों भाइयों ने चूहा और बिल्ली की लड़ाई देखी। उन्होंने यह भी देखा कि इस युद्ध में चूहा ने बिल्ली को खदेड़ दिया। उसी वक्त उन्हें यह ज्ञान हो गया कि इस वीर भूमि पर मां त्रिपुर सुंदरी की अलौकिक शक्ति है। भागवत में एक वचन आया है कि गंगा के तट पर भगवती का एक सिद्ध पीठ है, जो मंगलापीठ कहा जाता है। माना यह भी जाता है कि पूरे भारतवर्ष में गंगा के किनारे इस पीठ के सिवा और कोई मंगलापीठ नहीं है। दोनों शाक्त बंधु कुछ महीनों बाद जगन्नाथ जी से जब लौटे तो यहां ठहर कर तेजस्वी डीह की प्राप्ति का मार्ग ढूंढने लगे। उस वक्त इस भूभाग पर पाल वंश का एक प्रतापी राजा इंद्रद्युम्न का आधिपत्य था। राजा अपने इकलौते पुत्र की कुष्ठव्याधि से परेशान थे। राजा ने दोनों शाक्त बंधु श्रीपृथु ठाकुर और श्रीजय जय ठाकुर से पुत्र की नई जिंदगी की भीख मांगी। इस आग्रह को स्वीकार कर शाक्त बंधु ने अपनी तंत्र शक्ति से राजपुत्र को रोग मुक्त कर राजा से इस भूभाग को प्राप्त कर लिया। कहा जाता है कि इस भूभाग पर बढ़ई जाति के लोग रह रहे थे। इसलिए कालांतर में यह इलाका बड़हिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्राह्मण वंश में प्रातः स्मरणीय एवं त्रिपुर सुंदरी के प्रतिष्ठाता पंडित श्रीधर ओझा अवतरित हुए थे। हालांकि इनकी जन्मतिथि और काल के संबंध में कहीं कोई लिखित प्रमाण नहीं मिला है। सन 1939 में गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित भक्तचरित्रांक में इनके संबंध में कहा गया है कि यह शास्त्रज्ञ, सिद्ध तांत्रिक और श्मशानी साधक थे। यह घर परिवार से दूर गंगा के तट पर कुटिया में रहकर देवी की अनेक सिद्धियों को प्राप्त कर चुके थे। बड़हिया ग्राम निर्माण के कई सौ वर्ष पूर्व से ही वे यहां धर्म प्रचार करते थे। पूरे भारतवर्ष में श्रीधर ओझा ही वैष्णो देवी के प्रतिष्ठाता थे।