स्कूल के मनमानी के आगे अभिभावक, शिक्षक दोनों त्रस्त है, शिक्षा विभाग मस्त

अभिभावक का कर्तव्य है कि बच्चों को पढ़ाये और शिक्षक की मजबूरी है कि स्कूल प्रशासन की माने। अभिभावक को बच्चे पढ़ाना है और शिक्षक को नौकरी करना है। दोनों के परेशानियों का भरपूर लाभ उठा रहे शिक्षा के दुकानदार। पैरेंट टीचर मीटिंग में दुकानदार उल्टे ग्राहक से शिकायत करते है कि आपके बच्चे पढ़ने में ठीक नही है, अगर ठीक नही है तो जिम्मेदारी किसकी है, आखिर अभिभावक से आप मासिक शुल्क किस बात के ले रहे है ? स्कूल तो सिर्फ डिग्री बांटने वाली संस्था बनकर रह गयी है। वहाँ काम मिलते है जिसे बच्चे घर में आकर अलग से ट्यूशन के लिए मास्टर रखकर साल्व करते है, जिसके मां बाप के पास में पैसे नही है उसके बच्चे तो अनपढ़ ही रहेंगे। मां बाप को पढ़ा लिखा होना जरूरी है क्योंकि स्कूल तो सिर्फ फीस लेने के लिए पढ़ाना तो उनको ही है।

अभिभावक से स्कूल फिस एडवांस मे जमा करा लिए जाते है समय से नही देने वालों पर पैनल्टी लगाये जाते है। लेकिन कई शिक्षक है जिनकों कई कई महीनों तक उनका वेतन नही दिया जाता है , वेतन मांगने पर स्कूल से निकाल दिये जाते है, पैनल्टी को तो छोड़िये साहब गाहे बगाहे अगर शिक्षक महोदय नें स्कूल के व्यवसायी में पूरा सहयोग नही दिया तो वेतन काट लिये जाते है।

700 रुपये की मिलने वाली एनसीआरटी के किताबों को दरकिनारों कर बच्चों को अपने प्राइवेट पब्लिकेशन से किताब 4 हजार मे बेचे जाते है। कांपी पेंसिल और किताब पर चढ़ाने के लिए खास कलर की गत्ता भी उनके ही दुकान से खरीदना होगा क्योंकि दूसरी जगह से खरीदेंगे तो मैच नही होने कारण बच्चों को स्वयं शिक्षक के द्वारा परेशान किया जाता है। अब तो नया काम और शुरु हो गया है सीजन के हिसाब से ड्रैस चाहिए अन्यथा आपको स्कूल से बाहर कर दिए जायेंगे। 5-7 सौ की मिलने वाली ट्रैक शूट में स्कूल अपना लोगों लगाकर 1 एक हजार से 5 हजार तक की बना देते है आखिर आपको लेना तो वही से है नही तो ड्रैस मैच नही करेगा।

बात यही तक नही है मुख्यमंत्री जी, प्रधानमंत्री जी, शिक्षा मंत्री जी, स्कूलों नें एनजीओं भी चला रखे है। इन्ही बच्चों को जबरदस्ती बुलाए जाते हैै, उनसे कुड़ा बिनबाए जाते है, फोटो खिचवाए जाते है और अखबार में छपवाकर गंगे नमामि या स्वच्छ भारत के नाम पर सरकारी फंड डकार जाते है। बच्चे के अभिभावक तो ऐसे ही मजबूर है जैसे कि बलिया में मुख्यमंत्री के आगमन पर थे। नही बोलना चाहते है। क्योंकि स्कूल माफिया के सामने सरकार के नही चलते है तो यह तो बेचारे अभिभावक है। नोएडा शहर के 80% स्कूलों में बच्चों के लिए खेलने की जगह नही है। स्कूल ऐसे ऐसे गलियों में है जहाँ फायर बिगेट की गाड़ी नही पहुँच सकती है। स्कूल में फायर से बचने के लिए कोई व्यवस्था नही है।

नोएडा गाजियाबाद जैसे शहर में जहाँ सामान्य बिल्डिंग जी प्लस 3 बनाने के लिए अनुमति है वही गाँव के कई स्कूलों नें इस नियम तो ताख पर रखते हुए जी प्लस 5 तक बना लिये है। बिल्डिंग के मानक तो भगवान भरोसे है।

मुख्यमंत्री जी लोग आपसे शिकायत कर नही सकते है क्योंकि शिक्षा माफिया उसको आप तक पहुँचने नही देंगे। अभिभावक बाहर से आकर यहाँ नौकरी पेशा करते है। स्वयं शिक्षक की हालत भी अभिभावक के जैसे है। शिक्षक महोदय अपने आत्मा को कैेसे समझा पाते होंगे यह कहने के लिए मेरे पास में शब्द नही क्योंकि गुरू है और गुरू और मां में कोई ज्यादा फर्क नही होते है गुरुकुल के अनुसार।

लेकिन सोचिये जिस राज्य में राम राज्य की कल्पना की जा रही हो। जिस देश की सरकारे 80 करोड़ जनता को फ्रि मे राशन दे रहा हो। किसान सम्मान दे रहा हो, लेकिन फ्रि शिक्षा व्यवस्था करने में या फिर शिक्षा माफिया पर नकेल कसने में नाकामयाब रहा हो क्या हम राम राज्य की कल्पना कर सकते है ? स्कूल में न जाने किस किस बात की पैनल्टी लगते रहते है अभिभावक पेय करे तो ठीक है नही तो बच्चों को अपने ही घर में चोरी करना सीख जाता है क्योंकि उसे पैनल्टी जो भरना है।

स्कूल एक ऐसा इंडस्ट्रीज है जहाँ पर बच्चों को टूर कराने के लिए बच्चो के अभिभावक से ही पैसे लिए जाते है। जबकि बांकि के इंडस्ट्रीज में आपके टूर का सारा खर्च संस्थान ग्रहण करती है। शिक्षक बच्चों को पता नही आजकल क्या क्या शिक्षा दे रहे है, जब हम पढ़ते थे और पैरेंट घुमने के लिए पैसे नही देते थे तो भूख हड़ताल कर देती थी या देता था। सोचिये इसका बच्चोंं पर क्या असर होगा। यह प्रवृति बच्चों को आत्महत्या करने के लिए अग्रसर करते है।

अभिभावक के लिए

आज जरूरी है कि अभिभावक जागरुक हो। बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की यही मंशा कही न कही शिक्षा माफिया को बढ़ावा दे रहा है। आज अपने आप को गरीब कहने वाले अभिभावक भी स्कूल फीस के नाम पर प्राइवेट स्कूलों को हजारों रुपये महीने दे रहे है सिर्फ अंग्रेजी शिक्षा लेकर बच्चे पैकेज तैयार हो रहे है बिना संस्कार के। इसके एक तिहाई भी अगर हम सरकार को दे तो सरकार हर मोहल्ले में एक स्कूल बनाकर सरकार आपकों दे सकती है वह भी पूर्ण सुविधा के साथ । सरकारी स्कूल सिर्फ मध्याहन भोजन के लिए नही है जैसा कि बना दिया गया है। आपके गाँव है आपके शहर है आपकी गली और आपके मोहल्ले है आपको ही मानिटर करना होगा। जिस प्रकार से एक रेजिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन बनाए जाते है, एक राजनीतिक पार्टी बनायी जाती है और चलायी जाती है क्या उसे प्रकार से निजी सहयोग से शिक्षा के मंदिर नही चलायी जा सकती है ?

अभिभावक का यही पुकार, सामान शिक्षा सामान अधिकार।