मोरबी हादसे पर सवाल तो उठेंगे ही!

*

*शिवानन्द तिवारी*

गुजरात के मोरबी हादसे में मरनेवालों की संख्या एक सौ चौंतीस से ऊपर चली गयी है। लोगों का मानना है कि यह संख्या और भी बढ़ सकती है। एक सौ से ऊपर लोग अस्पताल में भर्ती हैं।
यह एक मानवीय त्रासदी है। इस बात से मैं सहमत हूँ कि इसको राजनीति का एजेंडा नहीं बनाया जाना चाहिए। लेकिन ऐसी घटनाओं पर राजनीति करने से भाजपा ने कभी परहेज़ नहीं किया। 2016 में बंगाल चुनाव अभियान के समय कोलकाता में पोस्ता फ़्लाइओवर का एक स्पैन ढलाई के समय ढह गया था। स्वयं प्रधानमंत्री जी ने बहुत निर्ममता के साथ उस दुखद घटना को भंजाने की जमकर कोशिश की थी। इसलिए सवाल तो उठेंगे ही।

कोलकाता की दुर्घटना में 21 लोगों की मौत हो गयी थी। मोरबी में अबतक 134 से ज़्यादा लोगों के मरने की ख़बर आ रही है।
सवाल उठाने का एक वजह और भी है। 2014 में जब मोदीजी लोकसभा चुनाव का अभियान चला रहे थे उस समय गुजरात को ही एक मॉडल के रूप में देश के सामने रखा जा रहा था। सब जानते हैं कि पूर्व में मोदीजी लम्बे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गुजरात के विकास का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार किया जा रहा था। देश के कारपोरेट जगत ने, जिनके हाथ में प्रचार तंत्र था, गुजरात के विकास को एक माॅडल तथा मोदी जी को बहुत सक्षम और कुशल सरकार चलानेवाले मुख्यमंत्री के नमूना के रूप में देश के सामने परोसने का अभियान चलाया था। उस समय तक मनमोहन सरकार से देश की जनता निराश हो चुकी थी। लोग बदलाव के लिए विकल्प चाहते थे। तत्कालीन विकल्पहीनता की पृष्ठभूमि में लोग मोदी जी में सक्षम और कुशल प्रधानमंत्री की छवि देखने लगे।
लेकिन, गुजरात मॉडल क्या है, मोरबी की घटना ने यह साबित कर दिया है। अजंता नगरपालिका उस झूला पुल का संचालन करती है। उक्त झूला पुल मरम्मत के लिए महीनों से बंद था। दो करोड़ रुपये की लागत से मरम्मत के बाद चार पाँच दिन पहले उसको इस्तेमाल के लिए खोला गया था। बताया जा रहा है कि बग़ैर फ़िटनेस सर्टिफिकेट के पुल का संचालन शुरू कर दिया गया। इस घोर लापरवाही की क़ीमत एक सौ चौंतीस लोगों ने अपनी जान दे कर चुकाई.
मोरबी छोटे छोटे उद्योगों का शहर है. वहाँ अच्छी ख़ासी संख्या में बिहारी भी रहते हैं।बताया जा रहा है कि मृतकों में कई बिहारी भी हैं।
अब तक यह साबित हो चुका है कि गुजरात माॅडल और कुछ नहीं बल्कि धोखा था। मोदी जी भले ही जनता की आँखों में धूल डाल कर चुनाव जीत जाते हैं। लेकिन इतिहास में उनका नाम अभीतक के सबसे असफल प्रधानमंत्री के रूप में दर्ज होगा। इन्होंने देश की समस्याओं को घटाया नहीं बल्कि बढ़ाया है. अगर सरदार पटेल आज जीवित होते तो गुजरात के मुख्यमंत्री का कान पकड़कर अब तक उन्होंने उन्हें गद्दी से उतार दिया होता. मृतकों के परिवार के प्रति मैं हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूँ। गुजरात के मुख्यमंत्री से मैं मांग करता हूँ कि इस ह्रदय विदारक घटना के लिए वे अपना कान पकड़कर जनता से माफ़ी मांगे।
*(लेखक राजद के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व मंत्री हैं )*