प्रो.चंद्रशेखर : सींगें फंसीं और हो‌ गयी विदाई

शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग से गन्ना विकास विभाग! प्रोन्नति की जगह अवनति!

आस्थावानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली बात प्रो.चंद्रशेखर नहीं करते, तो शायद शिक्षा विभाग से उन्हें ऐसे बेआबरू होकर निकलना नहीं पड़ता

मधेपुरा/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

मधेपुरा विधान सभा सीट के राजद विधायक प्रो चंद्रशेखर का शिक्षा विभाग छीन कर प्रोन्नति की जगह अवनति! कर दी गई।
आस्थावान लोग इसे उस प्रसंग से जोड़ कर देख सकते हैं जिसमें राम और रामचरितमानस के धार्मिक महत्व पर अंगुलियां उठायी गयी थीं. बात शिक्षा मंत्री के पद से रुखसत कर दिये गये प्रो. चन्द्रशेखर की है. कारण जो रहा हो, शिक्षा मंत्री रहते उनकी सींगें विभागीय अपर मुख्य सचिव के के पाठक से ऐसी फंस गयीं कि शिक्षा विभाग से विदाई से ही सुलझ पायीं. अधिकार को लेकर अघोषित टकराव से खिन्न के के पाठक छुट्टी पर चले गये. उन्हें मनाने के लिए प्रो. चन्द्रशेखर को‌ शिक्षा विभाग से उठाकर गन्ना विकास विभाग का मंत्री बना दिया गया. ऐसा माना जाता है कि गन्ना विकास विभाग में ‘झाल बजाने’ के अलावा वर्तमान में करने के लिए विशेष कुछ नहीं है. शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग से गन्ना विकास विभाग! प्रोन्नति की जगह अवनति!

धर्म और आस्था से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है. विशुद्ध रूप से यह राजनीतिक और प्रशासनिक मामला है. मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मामला. प्रशासनिक मुख्यमंत्री का और राजनीतिक उपमुख्यमंत्री का. उपमुख्यमंत्री का इसलिए भी कि मामला महागठबंधन में आवंटित उनके दल के कोटे के विभाग से जुड़ा है. दोनों ने अपने अधिकार का उपयोग किया. संबंद्ध विभाग में अघोषित टकराव के जो हालात बन गये थे, मुकम्मल रूप से नौकरशाहों पर निर्भर शासन में उसकी ऐसी ही परिणति होनी थी, हुई. इस दृष्टि से आम अवाम के लिए यह तनिक भी हैरान करने वाला निर्णय नहीं है. जदयू द्वारा बचाव किये जाने, छींटाकशी से खिन्न होकर अर्जित अवकाश पर जाने और अपनी शर्त पर बीच में लौट आने से स्पष्ट संकेत मिल गया था कि आगे क्या होना है. जो होना था वह सामान्य प्रक्रिया के तहत हुआ‌.

प्रो. चन्द्रशेखर का तर्क जो हो, राम और रामचरितमानस मानस के प्रति अगाध आस्था रखने वाले कहेंगे कि इस प्रकरण से राम और रामचरितमानस की अदृश्य शक्ति का उन्हें अहसास हो गया होगा. इससे तो और भी कि सत्तारूढ़ महागठबंधन में बड़ी हैसियत रखने के बावजूद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद उनकी ‘प्रतिष्ठा’ नहीं बचा पाये. विश्लेषकों की मानें, तो ‘सत्ता स्वार्थ’ में नीतीश कुमार के समक्ष समर्पण की मुद्रा में आ‌‌ गये. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि रामचरितमानस के दोहों – चौपाइयों की‌ प्रो. चन्द्रशेखर द्वारा की गयी ‘असामयिक- अप्रासंगिक व्याख्या’‌ राजद नेतृत्व को भी रास नहीं आयी. ऐसा नहीं, तो उनकी ‘अवनति’ के मामले में उसका मजबूत हस्तक्षेप क्यों‌ नहीं हुआ? आखिर, नीतीश कुमार की सरकार तो उसी के कंधे पर टिकी है!

बहरहाल, रामचरितमानस की कथित निंदा का फल प्रो. चन्द्रशेखर के लिए इस हाथ से किये और उस हाथ से पाये जैसा हो गया. प्रो. चन्द्रशेखर इसे बकवास से ज्यादा महत्व नहीं देंगे, पर आम समझ है कि आस्थावानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली बात वह नहीं करते, तो शायद शिक्षा विभाग से ऐसे बेआबरू होकर निकलना नहीं पड़ता. गौर करने वाली बात है कि उनकी इस व्याख्या पर जदयू ने भी आंखें तरेरी थी. इस प्रसंग में दिलचस्प बात यह भी कि राजद प्रो. चन्द्रशेखर की ‘अवनति’ को मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र की बात कहता है. यानी कार्रवाई उनके द्वारा की गयी बताता है. दूसरी तरफ जदयू इसका ठीकरा राजद नेतृत्व के सिर फोड़ता है. इस‌ तर्क से कि महागठबंधन की सरकार में शिक्षा राजद को आवंटित विभागों में शामिल है. उस विभाग का मंत्री किसको बनाना है किसको नहीं, यह वही तय करता है . दूसरे की इसमें कोई भूमिका नहीं होती।